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सोम॒ꣳ राजा॑न॒मव॑से॒ऽग्निम॒न्वार॑भामहे। आ॒दि॒त्यान् विष्णु॒ꣳ सूर्य्यं॑ ब्र॒ह्माणं॑ च॒ बृह॒स्पति॒ꣳ स्वाहा॑ ॥२६॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सोम॑म्। राजा॑नम्। अव॑से। अ॒ग्निम्। अ॒न्वार॑भामह॒ इत्य॑नु॒ऽआर॑भामहे। आ॒दि॒त्यान्। विष्णु॑म्। सूर्य॑म्। ब्र॒ह्मा॑णम्। च॒। बृह॒स्पति॑म्। स्वाहा॑ ॥२६॥

यजुर्वेद » अध्याय:9» मन्त्र:26


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर कैसे राजा को स्वीकार करें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्य लोगो ! जैसे हम लोग (स्वाहा) सत्यवाणी से (अवसे) रक्षा आदि के अर्थ (विष्णुम्) व्यापक परमेश्वर (सूर्य्यम्) विद्वानों में सूर्य्यवत् विद्वान् (ब्रह्माणम्) साङ्गोपाङ्ग चार वेदों को पढ़नेवाले (बृहस्पतिम्) बड़ों के रक्षक (अग्निम्) अग्नि के समान शत्रुओं को जलानेवाले (सोमम्) शान्त गुणसम्पन्न (राजानम्) धर्माचरण से प्रकाशमान राजा और (आदित्यान्) विद्या के लिये जिसने अड़तालीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य्य रहकर पूर्ण विद्या पढ़, सूर्यवत् प्रकाशमान विद्वानों के सङ्ग से विद्या पढ़ के गृहाश्रम का (अन्वारभामहे) आरम्भ करें, वैसे तुम भी किया करो ॥२६॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर की आज्ञा है कि सब मनुष्य रक्षा आदि के लिये ब्रह्मचर्य्य व्रतादि से विद्या के पारगन्ता विद्वानों के बीच, जिसने अड़तालीस वर्ष ब्रह्मचर्य्य व्रत किया हो, ऐसे राजा को स्वीकार करके सच्ची नीति को बढ़ावें ॥२६॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः कीदृशं राजानं स्वीकुर्य्युरित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(सोमम्) सोमगुणसम्पन्नम् (राजानम्) धर्माचरणेन प्रकाशमानम् (अवसे) रक्षणाद्याय (अग्निम्) अग्निमिव शत्रुदाहकम् (अन्वारभामहे) (आदित्यान्) विद्याऽर्जनाय कृताऽष्टचत्वारिंशद्वर्षब्रह्मचर्य्यान् विदुषः (विष्णुम्) व्यापकं परमेश्वरम् (सूर्य्यम्) सूरिषु विद्वत्सु भवम् (ब्रह्माणम्) अधीतसाङ्गोपाङ्गचतुर्वेदम् (च) (बृहस्पतिम्) बृहतामाप्तानां पालकम् (स्वाहा) सत्यया वाण्या ॥२६॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा वयं स्वाहाऽवसे सह वर्त्तमानं विष्णुं सूर्य्यं ब्रह्माणं बृहस्पतिमग्निं सोमं राजानमादित्याँश्चान्वारभामहे तथा यूयमप्यारभध्वम् ॥२६॥
भावार्थभाषाः - ईश्वराज्ञाऽस्ति सर्वे मनुष्या रक्षणाद्याय ब्रह्मचर्य्यादिना विद्यापारगान् विदुषस्तन्मध्य उत्तमं सूर्य्यादिगुणसम्पन्नं राजानं च स्वीकृत्य सत्यां नीतिं वर्धयन्त्विति ॥२६॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ईश्वराची अशी आज्ञा आहे की सर्वांच्या रक्षणासाठी ब्रह्मचर्य व्रत पालन करून विद्येत निष्णात असलेल्या विद्वानांमध्ये राहून ज्याने अठ्ठेचाळीस वर्षे ब्रह्मचर्य व्रत पालन केलेले आहे अशा व्यक्तीला राजा म्हणून निवडावे व उत्तम नीतिमूल्ये वृद्धिंगत करावीत.